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मेरा एक घर हुआ करता था -🖊अनोयुक्षा

मेरा एक घर हुआ करता था।
जितना महफ़ूज़ मैं वहाँ रही, 
उतना और कहीं नहीं।
जितना उसने प्यार दिया,
वो मैंने पाया कहीं नहीं।
मैंने उसे जितना चाहा, 
और किसी को चाहा कभी नहीं। 
है प्यार तो अब भी उतना ही उससे, 
पर अब वो मेरा रहा नहीं।
ढांचा तो अब भी वैसा ही है।
रंग रूप भी सब वही।
एहसास लेकिन है बदल सा गया, 
क्योंकि अब वो मेरा रहा नहीं।
चली जाती हूँ उस गली रोज़ फ़िर भी। 
है अब भी खड़ा नज़रों के सामने ही। 
पर और आगे जाऊँ कैसे?
मंज़िल तो है, पर रास्ता ही नहीं।
मेरा एक घर हुआ करता था।
मेरा ना एक घर हुआ करता था।।
 🖊अनोयुक्षा

Thankyou 😊
#happyreading

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